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best Husn Status in Hindi हुस्न शायरी 2 लाइन

best Husn Shayari

“husn-per-shayari”
तेरे हुस्न की तारीफ मेरी शायरी के बस की नहीं, तुझ जैसी कोई और कायनात में ही नहीं बनी।
“husn-per-shayari”
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का, क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम।
“husn-per-shayari”
तेरे हुस्न पर तारीफ भरी किताब लिख देता, काश के तेरी वफ़ा तेरे हुस्न के बराबर होती।
“husn-per-shayari”
चुपके चुपके पहले वो ज़िन्दगी में आते हैं, मीठी मीठी बातों से दिल में उतर जाते है।
“husn-per-shayari”
बच के रहना इन हुस्न वालों से यारो, इन की आग में कई आशिक जल जाते हैं।
“husn-per-shayari”
किसी के हुस्न की शम्मा का परवाना हूँ, अक्सर लोग मुझे कहतें हैं मैं दीवाना हूँ।

हुस्न शायरी

“husn-per-shayari”
ये आईने ना दे सकेंगे तुझे, तेरे हुस्न की खबर, कभी मेरी आँखों से आकर पूछ, के कितनी हसीन है तू।
“husn-per-shayari”
शायद तुझे खबर नहीं ए शम्मे-आरजू, परवाने तेरे हुस्न पे कुरबान गये है।
“husn-per-shayari”
लोग कहते हैं, कि इश्क इतना न करो, कि हुस्न पर सवार हो जाये.. हम कहते हैं।
“husn-per-shayari”
कि इश्क इतना करो कि, पत्थर दिल को भी प्यार हो जाये।
“husn-per-shayari”
माना कि बड़ा खुबसूरत हुस्न है तेरा लेकिन, दिल भी होता तो क्या बात होती।
“husn-per-shayari”
मेरी निगाह-ए-इश्क भी कुछ कम नही, मगर, फिर भी तेरा हुस्न तेरा ही हुस्न है।
दुनिया में तेरा हुस्न मेरी जां सलामत रहे, सदियों तलक जमीं पे तेरी कयामत रहे।
तेरे हुस्न को परदे की ज़रुरत नहीं है ग़ालिब, कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद।
तेरी सादगी का हुस्न भी लाजवाब है, मुझे नाज़ है के तू मेरा इंतेख़ाब है।

हुस्न शायरी in Urdu

हुस्न वालों के पीछे दीवाने चले आते है, शमा के पीछे परवाने चले आते है।
तुम भी चली आना मेरे जनाजे के पीछे, उसमे अपने तो क्या बेगाने भी चले आते है।
अब हम समझे तेरे चेहरे पे तिल का मतलब। हुस्न की दौलत पे दरबान बिठा रखा है।
हुस्न हर बार शरारत में पहल करता है, बात बढती है तो इश्क के सर आती है।
ना कर जिद दीवाने हुस्न को बेपर्दा तकने की, हया जो फैलेगी रूखसार पर ,जान लेवा होगी।
हुस्न वालों ने क्या कभी की खता कुछ भी, ये तो हम हैं सर इल्ज़ाम लिए फिरते हैं।

हुस्न शायरी 2 लाइन

मुझको मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फ़राज़, मेरी नज़रों में हसीन वो है जो तुझ जैसा हो।
कहाँ तक जफा हुस्न वालों के सहते, जवानी जो रहती तो फिर हम न रहते।
तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न हो, लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो।

हुस्न शायरी

हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है, आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते।
चेहरों की इतनी फ़िक्र क्यूँ है, रंगों की इतनी क़द्र क्यूँ है, हुस्न अस्ल किरदार का है, गोरा काले से बेहतर क्यूँ है।
हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब, फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे।
दिल जो अजब शहर था ख्यालों का, लूटा हुआ है हुस्न वालों का।

हुस्न शायरी 4 लाइन

हुस्न-ए-ख़ुमारी का आलम क्या पूछते हो, गजरा, चूड़ी, काजल, बिंदी, उफ्फ्फ तुम क्या पूछते हो।
कितनी तारीफ करूं उस जालिम के हुस्न की, पूरी किताब तो बस उसके, होठों पर ही खत्म हो जाती है।
पलट कर देख ये ज़ालिम तमन्ना हम भी रखते है, तुम अगर हुस्न रखती हो तो जवानी हम भी रखते है।
हुस्न की मल्लिका हो या साँवली सी सूरत, इश्क अगर रूह से हो तो हर चेहरा कमाल लगता है।
उसके हुस्न की तारीफ फ़क़त इतनी सी है, जहाँ से गुजर जाए,लोग मिसाल देते है।
ओ मस्त-ए-नाज़ हुस्न तुझे कुछ ख़बर भी है, तुझ पर निसार होते हैं किस किस अदा से हम।
हुस्न भी तेरा अदाए भी तेरी, नखरे भी तेरी शोखिया भी तेरी, बस इश्क़ मेरा रहने दो।

हुस्न शायरी in Urdu

झूम जाते हैं शायरी के लफ़्ज़ बहार के पत्तों की तरह, जब शुरू होता है बयाँ-ऐ-हुस्न महबूब का मेरे।
जाके डसा मांगे ना पानी, हुस्न .इश्क. और जवानी।
ये हुस्न तेरा ये इश्क़ मेरा रंगीन तो है बदनाम सही।
मुझ पर तो कई इल्ज़ाम लगे तुझ पर भी कोई इल्ज़ाम सही।

हुस्न शायरी 2 लाइन

हुस्न वाले जब तोड़ते है दिल किसीका, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम।
ये हुस्न वाले भी देखो क्या गजब ढाते है, कत्त्ल करके नजरों से,बे-कसूर कहलाते है।
ये सब हुस्न वाले मेरी माला के मनके हैं, नज़र में घूमते रहतें हैं, इबादत होती रहती है।
तेरी हुस्न की क्या तारीफ करू ए जालिम, तेरी तुलना करने में तो आप्सरायो का चेहरा भी आँखों से ओझल हो जाता है।

Husn-Shayari

दरिया ऐ हुस्न दो हाथ ओर बढ गया, जब उन्होने अंगडाई ली दोनो हाथ उठा कर।
हुस्न का आशिक तो हर कोइ होता हैं, हम तो उनके दिल पर मरते हैं।
इश्क़ क्या, हुस्न क्या, फ़साना क्या, हम न होंगे तो ये रंग-ए-ज़माना क्या।
दिल्लगी नहीं शायरी जो किसी हुस्न पर बर्बाद करें, यह तो एक शमा है जो उस नूर का पयाम है।
अपने शब्दों से ही समा जाऊंगा , ज़हन में तुम्हारे, वो निगाहें, वो हुस्न, वो मुलाकात की, जरूरत नही मुझे।
संभाल नहीं पाते हैं तुमको देख कर मेरी जान, हुस्न की बिजली इतनी ना गिरा की मेरी जान निकल जाए।
मोहब्बत को छोड़कर क्या नही मिलता बाजार में, हुस्न जिस्म चुंबन वादा अदा जो मन करे खरीद लो।
ये आईने नही दे सकते तुझे तेरे हुस्न की ख़बर, कभी मेरी इन आँखों से आकर पूछ तुम कितनी हसीन हो।
मैं हुस्न हूँ, मेरा रूठना लाजिमी है, तुम इश्क़ हो, ज़रा अदब में रहा करो।
जिंदगी दिल के राज तभी खोलती है, जब किसी हुस्न की निगाह बोलती है।
काली लटों का राज ये बहोत गहरा है, हुस्न पर छाया घनी जुल्फों का पहरा है।
ये शब ओ रोज़ जो इक बे-कली रक्खी हुई है, जाने किस हुस्न की दीवानगी रक्खी हुई है।
ढाया खुदा ने ज़ुल्म हम दोनों पर, तुम्हें हुस्न और मुझे इश्क देकर।
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास, दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं।
लत लग गई हमे तो अब तेरे दीदार-ए-हुस्न की, इसका गुन्हेगार किसे कहे खुद को या तेरी कातिल अदाओ को।
ग़जब हाल है हुस्न ए शबाब का, ये क़त्ल भी कर दें तो गुनहगार नही होते।
वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं, तमाम जिस्म को कासा बना के चलना है।
हुस्न में नाज़ था, नज़ाकत थी, इश्क़ में एहसास था, शराफ़त थी।
वो ज़माने भी क्या ज़माने थे, जब प्यार करना इक इबादत थी।
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क ने जाना है, हम खाक नशीनो की ठोकर में ज़माना है।
तेरा हुस्न वो कातिल है ज़ालिम, जो क़त्ल तो करता है और, हाथ में तलवार भी नही रखता।
दर्दे दिल की दवा नहीं करते, ये करम दिलरुबा नहीं करते।
चोट खाई तो ये यकीन हुआ, हुस्न वाले कभी दुआ नहीं करते।
तुझे नाज है तु हुस्न है .तेरे गुलिस्ता की, मुझे फक्र है मैं इश्क हूँ, तुझे तड़पा न दूं तो कमाल क्या।
कितना मुश्किल है जहाँ मे अच्छा दिलजानी होना, हुस्न के दौर में ईश्क का रूहानी होना।
इश्क़ दीवाना हुस्न भी घायल, दोनों तरफ़ इक दर्द-ए-जिगर है।
दिल की तड़प का हाल न पूछो, जितनी इधर है उतनी उधर है।
ये नाजो-हुस्न तो देखो..दिल को तड़पाये जाते है, नजरे मिलाते नही बस मुस्कुराये जाते है।
हुस्न के दीवाने हैं सब यहां, दिल की खूबसूरती लुभाती नहीं।
किसी को चार पल का नशा है मोहब्बत, इनको सच्ची मोहब्बत भाती नहीं।
शरीके-ज़िंदगी तू है मेरी, मैं हूँ साजन तेरा, ख्यालों में तेरी ख़ुश्बू है चंदन सा बदन तेरा।
अभी भी तेरा हुस्न डालता है मुझको हैरत में, मुझे दीवाना कर देता है जलवा जानेमन तेरा।
क्यों तुम मेरे ख्यालों में आकर चली जाती हो, अपनी जुल्फों को बिखराकर चली जाती हो।
रग रग में उमड़ आता है तूफान हुस्न का, तुम जो फूल सा मुस्कुराकर चली जाती हो।
होठों पे हंसी रुख पे हया याद रहेगी, ऐ हुस्न तेरी शोख अदा याद रहेगी।
ऐ दिल सुना न मुझको बिसरी हुई कहानी, कुछ इश्क की तबाही कुछ हुस्न की जवानी।
हुस्न ढल गया गुरूर अभी बाकी है, नशा उतर गया सुरूर अभी बाकी है।
जवानी ने दस्तक दी और चली गई, जेहन में वही फितूर अभी बाकी है।
मदहोशी से भरा हुस्न है मेरा सनम, अगर नज़रें इनायत न की तो तौहीन ए इश्क़ होगा।
हुस्न वाले वफ़ा नहीं करते, इश्क वाले दगा नहीं करते, जुल्म करना तो इनकी आदत है, ये किसी का भला नहीं करते।
इश्क़ ने जब माँगा खुदा से दर्द का हिसाब। वो बोले हुस्न वाले ऐसे ही बेवफाई किया करते हैं।
पायल तेरी, झुमकी तेरी, और ये जो नथनी नाक की, हुस्न तो, जो है सो है, ख़लिश हैं लोगों की आंख की।
हुस्न की तारीफ सादगी का मजाक, कुछ ऐसा है आजकल दुनिया का मिजाज।
नरगिसी आँख डोरे गुलाबी, मस्त ये हुस्न है मय के प्याले, शैख गर देख ले तुझको जालिम,अपनी तौबा वही तोड़ डाले।
हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं, उनकी एक झलक को बेकरार हुए बैठे हैं।
उनके नाजुक हाथों से सजा पाने को, कितनी सदियों से गुनाहगार हुए बैठे हैं।
हुस्न पर जब भी मस्ती छाती है, तब शायरी पर बहार आती है।
पीके महबूब के बदन की शराब, जिंदगी झूम-झूम जाती है।
कांच का जिस्म कहीं टूट न जाये, हुस्न वाले तेरी अंगड़ाइयो से डर लगता है।
दिल तो चाहता है चूम लू तेरे रुखसार, फिर सोचते हैं के तेरे हुस्न को दाग़ न लग जाए।
बादलों में छुप रहा है चाँद क्यों, अपने हुस्न की शोखियों से पूछ लो, चांदनी पड़ी हुई है मंद क्यों, अपनी ही किसी अदा से पूछ लो।
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से, मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है।
तेरे इस हुस्न को नकाब की जरुरत ही क्या है, क्या कोई रह सकता हैं होश में, तेरी एक झलक के बाद।
सर-ए-आम यूँ ही जुल्फ संवारा न कीजिये, बे-मौत हमको हुस्न से मारा न कीजिये।
हुस्न में नज़ाक़त इश्क़ में शराफत, एक मरने न दे, दूजा जीने न दे।
ये हुस्न ये मौसम ये बारिश और मस्त ये मदमस्त हवाएँ, लगता है आज फिर मोहबत ने किसी का साथ दिया है।
न देखना कभी आईना भूल कर देखो, तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा।
नज़र इस हुस्न पर ठहरे तो आखिर किस तरह ठहरे, कभी जो फूल बन जाये कभी रुखसार हो जाये।
क्यों यह हुस्न वाले इतने मिज़ाज़ -ऐ -गरूर होते है, इश्क़ का लेते है इम्तिहान और खुद तालीम -ऐ -जदीद होते है।
ये तेरा हुस्न औ कमबख्त अदायें तेरी, कौन ना मर जाय,अब देख कर तुम्हें।
तेरा हुस्न बयां करना नहीं मकसद था मेरा, ज़िद कागजों ने की थी और कलम चल पड़ी।
मैं इज़्ज़त करता हूँ सिर्फ दिल से चाहने वाले की, हुस्न तो आज कल बाज़ार में भी बिकते हैं।
हुस्न और इश्क़ दोनों में तफ़रीक़ है, पर इन्हीं दोनों पे मेरा ईमान है।
गर ख़ुदा रूठ जाए तो सज़दे करूँ, और सनम रूठ जाए तो मैं क्या करूँ।
तेरा मुस्कुराना देना जैसे पतझड़ में बहार हो जाये, जो तुझे देख ले वो तेरे हुस्न में ही खो जाये।

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