मेरे लफ़्ज़ों को महफूज कर लो दोस्तों.
हमारे बाद बहुत सन्नाटा होगा, इस महफ़िल में।
उस अजनबी से हाथ मिलाने के वास्ते
महफ़िल में सब से हाथ मिलाना पड़ा मुझे।
इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप
शहर वालों से हमारी दुश्मनी बढ़ जाएगी।
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा।
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को है।
तुम्हारा जिक्र हुआ तो महफ़िल छोड़ आये, गैरों के लबों पे तुम्हारा नाम अच्छा नहीं लगता।
मैंने आंसू को समझाया, भरी महफ़िल में ना आया करो, आंसू बोला, तुमको भरी महफ़िल में तन्हा पाते है, इसीलिए तो चुपके से चले आते है।
देख के हमको वो सर झुकाते हैं, बुला कर महफ़िल में नजरें चुराते हैं।Mahafil Status
नफरत हैं तो कह देते हमसे, गैरों से मिलकर क्यों दिल जलाते हैं।
मुझे गरीब समझ कर महफिल से निकाल दिया, क्या चाँद की महफिल मे सितारे नही होते।
तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है, पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है।
गम ना कर ज़िंदगी बहुत बड़ी है, चाहत की महफ़िल तेरे लिए सजी है।फ़ानी बदायुनी
बस एक बार मुस्कुरा कर तो देख, तक़दीर खुद तुझसे मिलने बाहर खड़ी है।
फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी महफ़िल में, लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में।
देखी जो नब्ज़ मेरी तो हंस कर बोला हकीम, के तेरे मर्ज का इलाज़ महफ़िल है दोस्तों की।
कोई बेताब कोई मस्त कोई चुप कोई हैरान, तेरी महफ़िल में इक तमाशा है जिधर देखो।क़मर जलालवी
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना, ग़मों की महफ़िल भी कमाल जमती है।
ये न जाने थे की उस महफ़िल में दिल रह जायेगा, समझे थे कि चले आयेंगे दम भर देख कर।
जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे, तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे।
अगर देखनी है कयामत तो चले आओ हमारी महफिल मे. . सुना है आज की महफिल मे वो बेनकाब आ रहे हैँ।अलीम मसरूर
फ़रेब-ए-साक़ी-ए-महफ़िल न पूछिए "मजरूह" शराब एक है बदले हुए हैं पैमाने।
तुम बताओ तो मुझे किस बात की सजा देते हो मंदिर में आरती और महफ़िल में शमां कहते हो।
मेरी किस्मत में भी क्या है लोगो जरा देख लो, तुम या तो मुझे बुझा देते हो या फिर जला देते हो।
अपनी ही महफ़िल से रुखसत होकर यूँ दिल को लगाकर जलाना कोई उनसे सीखे।Mahafil Status
मेरी आवाज़ को महफूज कर लो,मेरे दोस्तों, मेरे बाद बहुत सन्नाटा होगा तुम्हारी महफ़िल में।
दुश्मन को कैसे खराब कह दूं, जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है।
उस से बिछड़े तो मालूम हुआ की मौत भी कोई चीज़ है फ़राज़ ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी महफ़िल में गुज़ार आए।
कल लगी थी शहर में बद्दुआओं की महफ़िल मेरी बरी आई तो मैंने कहा इसे भी इश्क़ हो इसे भी इश्क़ इसे भी इश्क़ हो।इसे मोहब्बत ना समझ लेना
कल लगी थी शहर में बद्दुआओं की महफ़िल मेरी बारी आई तो मैंने कहा इसे भी इश्क़ हो इसे भी इश्क़ इसे भी इश्क़ हो।
इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप, शहर वालों से हमारी दुश्मनी बढ़ जाएगी।
महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है, ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है, कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे, आज-कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है।
जाने क्या महफ़िल-ए-परवाना में देखा उस ने, फिर ज़बाँ खुल न सकी शम्अ जो ख़ामोश हुई।मजरूह सुल्तानपुरी
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से, चाँद जैसे ऐ "क़मर" तारों भरी महफ़िल में है।
यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते-आते, फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में।
वो अपने मेहंदी वाले हाथ मुझे दिखा कर रोई, अब मैं हुँ किसी और की, ये मुझे बता कर रोई।
कैसे कर लुँ उसकी महोब्बत पे शक यारो, वो भरी महफिल में मुझे गले लगा कर रोई।मेहमान-ए-ख़ास हो तुम
हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे, बहारे हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे।
ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा फिर भी, हज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे।
उतरे जो ज़िन्दगी तेरी गहराइयों में, महफ़िल में रह के भी रहे तनहाइयों में।
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें, प्यार ढुढतेँ रहे परछाईयों मे।Mahafil-Status-Shayari-In-Hindi
बेवफ़ाओं की महफ़िल लगेगी आज, ज़रा वक़्त पर आना।
बस एक चेहरे ने तनहा कर दिया हमे वरना, हम खुद में एक महफ़िल हुआ करते थे।
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है, उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को है।
सजती रहे खुशियों की महफ़िल, हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे।निदा फ़ाज़ली
आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें कि, ख़ुशी भी आपकी दीवानी बनी रहे।
शरीक-ए-बज़्म होकर यूँ उचटकर बैठना तेरा, खटकती है तेरी मौजूदगी में भी कमी अपनी।
दुनिया कि महफ़िलो से उकता गया हूँ मैं, क्या लुफ्त अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो।
इनमे लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल, महफ़िल के कुछ चिराग फ़रोज़ां हुए हैं।फ़ानी बदायुनी
बहुत दिनों बाद तेरी महफ़िल में कदम रखा है, मगर, नजरो से सलामी देने का तेरा अंदाज़ नही बदला।
तुम्हारी बज़्म से निकले तो हम ने ये सोचा ज़मीं से चाँद तलक कितना फ़ासला होगा।
जिंदगी एक आइना है, यहाँ पर हर कुछ छुपाना पड़ता है, दिल में हो लाख गम फिर भी महफ़िल में मुस्कुराना पड़ता है.तू जरा हाथ मेरा थाम के देख तो सही, लोग जल जायेगें महफ़िल मे, चिरागो की तरह।कफ़ील आज़र अमरोहवीमोहब्बत की महफ़िल में आज मेरा जिक्र है, अभी तक याद हूँ उसको खुदा का शुक्र है।कमाल करते हैं हमसे जलन रखने वाले, महफ़िलें खुद की सजाते हैं और चर्चे हमारे करते हैं।दुश्मन को कैसे खराब कह दूं, जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है।जिक्र उस का ही सही बज़्म में बैठे हो फ़राज़, दर्द कैसा भी उठे हाथ न दिल पर रखना।महफ़िल पर शायरीतेरी महफ़िल और मेरी आँखें दोनों भरी-भरी हैं।सहारे ढुंढ़ने की आदत नही हमारी, हम अकेले पूरी महफ़िल के बराबर है।महफ़िलों में फिरता रहता हूँ अजनबी सा, तन्हाइयों में भी तन्हाईयाँ नसीब नहीं होती।कोई बेसबब, कोई बेताब, कोई चुप, कोई हैरान है, ऐ जिंदगी, तेरी महफ़िल के तमाशे ख़त्म नहीं होते।इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप शहर वालों से हमारी दुश्मनी बढ़ जाएगी।पीते थे शराब हम उसने छुड़ाई अपनी कसम देकर।महफ़िल में गए थे हम यारों ने पिलाई उसकी कसम देकर।महफ़िल में गले मिल के वो धीरे से कह गए, ये दुनिया की रस्म है।