सेना से ओलंपिक और फिर राजनीति तक का सफर
राज्यवर्धन सिंह राठौर का जीवन संघर्ष, कड़ी मेहनत और समर्पण का उदाहरण है। उनका सफर भारतीय सेना से शुरू होकर ओलंपिक पदक जीतने और फिर देश की सेवा के लिए राजनीति में आने तक फैला हुआ है। यह कहानी प्रेरणा से भरपूर है।
1. बचपन और सेना में प्रवेश
राज्यवर्धन सिंह राठौर का जन्म 29 जनवरी 1970 को जैसलमेर, राजस्थान में हुआ। उनका परिवार सैन्य पृष्ठभूमि से था, जिससे बचपन से ही उनके अंदर अनुशासन और देशभक्ति की भावना थी। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) और भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) से प्रशिक्षण लिया और भारतीय सेना में अधिकारी बने।
कारगिल युद्ध (1999) के दौरान उन्होंने देश के लिए सेवा की, लेकिन सेना में रहते हुए भी उनका मन खेलों की ओर आकर्षित था।
2. सेना से निशानेबाज बनने तक का सफर
राठौर का असली जुनून निशानेबाजी (शूटिंग) था। सेना में रहते हुए भी उन्होंने अपने इस सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। 30 साल की उम्र में उन्होंने पेशेवर निशानेबाज बनने का फैसला किया, जबकि आमतौर पर खिलाड़ी अपने करियर की शुरुआत कम उम्र में करते हैं।
उन्होंने खुद को एक अनुशासित शूटर के रूप में तैयार किया और जल्द ही अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने लगे।
3. एथेंस ओलंपिक 2004 – इतिहास रचने का सपना पूरा
2004 के एथेंस ओलंपिक में, राज्यवर्धन सिंह राठौर ने डबल ट्रैप शूटिंग स्पर्धा में रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। यह किसी भी भारतीय निशानेबाज का ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत रजत पदक था।
यह जीत आसान नहीं थी – उन्होंने दिन-रात कड़ी मेहनत की, मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को मजबूत बनाया। उनकी इस उपलब्धि ने भारत में शूटिंग को एक नई पहचान दी और कई युवा निशानेबाजों को प्रेरित किया।
4. खेल से राजनीति तक – देश सेवा का दूसरा रास्ता
खेल में सफलता के बाद, उन्होंने 2013 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) जॉइन की और 2014 में जयपुर ग्रामीण से लोकसभा सांसद बने। उनकी नेतृत्व क्षमता को देखते हुए उन्हें युवा एवं खेल मामलों का राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया।
खेल मंत्री रहते हुए उन्होंने खेलो इंडिया योजना शुरू की, जिससे देश में खेलों को बढ़ावा मिला। बाद में वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी बने।
सीख जो हमें उनकी कहानी से मिलती है
- संघर्ष के बिना सफलता नहीं मिलती – सेना में सेवा करते हुए भी उन्होंने अपने सपने को नहीं छोड़ा।
- सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती – 30 की उम्र में उन्होंने निशानेबाजी में कदम रखा और ओलंपिक पदक जीता।
- समर्पण और अनुशासन सबसे जरूरी है – उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण उनकी मेहनत और अनुशासन था।
- सफलता के बाद भी सीखना जारी रखें – ओलंपिक पदक जीतने के बाद भी उन्होंने खेल और राजनीति में अपना योगदान जारी रखा।
💡 निष्कर्ष
राज्यवर्धन सिंह राठौर की कहानी हमें सिखाती है कि अगर मेहनत, लगन और सही दिशा में प्रयास किया जाए, तो सफलता निश्चित है। वे सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक सैनिक, एक पदक विजेता और एक नेता हैं, जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में देश का नाम रोशन किया है।
🎯 "संघर्ष करो, आगे बढ़ो और देश के लिए कुछ बड़ा करो!